अ़ब कोई आँसू बहता नही हैं आँखोंसे
सूख गए हैं सारे आँसू जाने कबसे
फ़िर कही गोली चली हैं कल शायद
दिन भी आजकल डरने लगे है रातोंसे
चाँद भी आजकल रक्तिमसा हैं कुछ कुछ यहाँ
छलनी हैं उसका भी सिना गोलियों की बौछारोसे
बाते न करना मुझसे अ़ब कोई इतिहास की
फ़िर कोई नौजवाँ बिछड़ गया हैं राहोंसे
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